Saturday, June 10, 2017

A Never Expected Journey Of Vaishno Devi & Amritsar

जम्मू तवी का रेलवे स्टेशन और सुबह के 03:30 बजे हैं । हम लोग 12 सदस्यों का ग्रुप लेके आये हैं यह से श्री अमरनाथ जी के दर्शन के लिए ।

जी हां चौकिये मत क्योंकि सोचके तो सब यही आये थे कि अमरनाथ जी के दर्शन परिस्थिति कुछ ऐसी बानी की जहा का बुलावा था वही पहुचे । हम यहाँ बात कर रहे हैं अप्रत्याशित यात्रा की जिसके बारे में हममें से किसी ने कभी नही सोचा होगा ।

जैसे ही हम स्टेशन से बाहर निकले ड्राइवर हीरालाल जी का कॉल आया कि गाड़ी पार्किंग में खड़ी है आ जाइये । हम बढ़ चले गाड़ी की ओर क्योंकि रात भर की  ट्रैन की  थकावट थी तो सबका यही मूड था कि ac चालू करके गाड़ी में ही सो जाया जाए क्योंकि आगे पहलगाम के लिए 12 घंटों का लंबा सफर भी करना था । करीब 4 बजे हम स्टेशन से आगे के लिए निकले ।
बड़ा ही मनोरम दृश्य था रास्ते का जैसा कि हर पहाड़ी रास्ते मे देखा जाता है । सुबह की ताजी पहाड़ी हवा और हरे भरे पेड़ों को देखके कौन सोना चाहेगा बस फिर क्या था सब अपने अपने फ़ोन निकाल कर फ़ोटो लेने में व्यस्त और ड्राइवर साहब अपने पंजाबी गानों की धुन पर मस्त ।

उधमपुर एरिया जैसे ही पार किया रास्ते मे थोड़ा अजीब सा माहौल प्रतीत होने लगा हर तरफ पुलिस और सेना की गाड़ियां बहुत ही तेज रफ्तार से निकलती दिखी तो मन मे कई तरह की शंकाए उठने लगी । ड्राइवर से पूछा तो उसने ब कोई जवाब नही दिया ।
पटनीटॉप पहुचने से कुछ किलोमीटर पहले हमें आर्मी वालो ने रोका और ड्राइवर से बड़े ही सख्त लहज़े में बात करने लगे । चूंकि वो लोग वहाँ की स्थानिय भाषा मे बात कर रहे थे तो हम कुछ समझ नही पाए । वहाँ से निकालके ड्राइवर ने गाड़ी की स्पीड बहुत बढ़ा दी । हमारे मना करने पर उसने बताया की आगे घाटी में सेना ने किसी आतंकी को उड़ा दिया है तो बहुत बड़ा जाम लग गया है और हमे किसी भी तरह पटनीटॉप पहुचना है क्योंकि ये जाम कब खत्म होगा कोई भरोसा ही नही है ।



फिर भी जब हम आगे बढ़े तो पता चला आगे घाटी में बड़ी पत्थरबाजी हो रही है । गाड़ियों को तोड़ा जा रहा है और तीर्थयात्रियों को भी मारा पीटा जा रहा है इसलिए सुरक्षा कारणों से हाईवे में सभी गाड़ियों को रोक दिया गया है ।


सुबह के लगभग 8 बज रहे थे और किसीने कुछ भी खाया नही था । बीच रास्ते मे फसे होने के कारण कोई होटल या रेस्टोरेंट ब नही था जो कुछ मिल सके । तब हमने सोचा आगे 2 km पैदल ही जाके कुछ ले आते हैं ।


जैसा कि शुरू से ही प्रत्याशित था कि शायद कुछ नही मिलेगा वैसा ही हुआ । जाम लगा होने के कारण भीड़ इतनी ज्यादा थी कि कुछ भी नही बचा था । न बिस्किट न नमकीन और न ही पानी की बोतल। भूखे प्यासे सभी लौट आये और आपस मे ही मस्तियाना शुरू कर दिया । सभी अपने अपने मोबाइल में व्यस्त हो गए हसीन वादियो की फ़ोटो खीचने में ।




दोपहर में क़रीब 3 बजे एक पानीपुरी वाला दिखाई दिया रास्ते मे तो ऐसा लगा मानों रेगिस्तान में बहार आ गयी हो । सुबह से सब भुखे प्यासे थे तो बिना वक़्त गवाए सभी एक साथ ही टूट पड़े उसपे । मैं बता नही सकता वो अनुभव कैसा अविस्मरणीय रहा होगा ।
 आखिर में जब जाम से थोड़ी राहत मिली तो हम शाम को 5 बजे पटनीटॉप पहुच ही गये । 12 घंटों तक जाम में फसे रहने के कारण सबकी हालत देखने लायक थी। 
अब चूंकि आगे जाना नामुमकिन था और वापसी की टिकट एक हफ्ते बाद कि थी तो सबने सोचा चलो यही कही घूम लेते हैं। पटनीटॉप भी यहाँ का जाना माना हिल स्टेशन है और यहाँ की हसीन सौंदर्य भी किसी स्वर्ग से कम नही था।



एक पूरा दिन यहाँ बिताने के बाद हम सबने वैष्णो देवी जाने का मन बनाया जो कि जम्मू कश्मीर राज्य का जाना माना तीर्थस्थल है जहाँ हर वर्ष श्रद्धालुओं की भीड़ लाखो की संख्या में पहुचती है। 



माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध प्राचीन मान्यता के अनुसार माता वैष्णो के एक परम भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर माँ ने उसकी लाज रखी और दुनिया को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया। एक बार ब्राह्मण श्रीधर ने अपने गाँव में माता का भण्डारा रखा और सभी गाँववालों व साधु-संतों को भंडारे में पधारने का निमंत्रण दिया। पहली बार तो गाँववालों को विश्वास ही नहीं हुआ कि निर्धन श्रीधर भण्डारा कर रहा है। श्रीधर ने भैरवनाथ को भी उसके शिष्यों के साथ आमंत्रित किया गया था। भंडारे में भैरवनाथ ने खीर-पूड़ी की जगह मांस-मदिरा का सेवन करने की बात की तब श्रीधर ने इस पर असहमति जताई। अपने भक्त श्रीधर की लाज रखने के लिए माँ वैष्णो देवी कन्या का रूप धारण करके भण्डारे में आई। भोजन को लेकर भैरवनाथ के हठ पर अड़ जाने के कारण कन्यारूपी माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को समझाने की कोशिश की किंतु भैरवनाथ ने उसकी एक ना मानी। जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब वह कन्या वहाँ से त्रिकूट पर्वत की ओर भागी और उस कन्यारूपी वैष्णो देवी हनुमान को बुलाकर कहा कि भैरवनाथ के साथ खेलों मैं इस गुफा में नौ माह तक तपस्या करूंगी। इस गुफा के बाहर माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने भैरवनाथ के साथ नौ माह खेला। आज इस पवित्र गुफा को 'अर्धक्वाँरी' के नाम से जाना जाता है। अर्धक्वाँरी के पास ही माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहाँ माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। कहते हैं उस वक्त हनुमानजी माँ की रक्षा के लिए माँ वैष्णो देवी के साथ ही थे। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर एक बाण चलाकर जलधारा को निकाला और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा 'बाणगंगा' के नाम से जानी जाती है, जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से भक्तों की सारी व्याधियाँ दूर हो जाती हैं। त्रिकुट पर वैष्णो मां ने भैरवनाथ का संहार किया तथा उसके क्षमा मांगने पर उसे अपने से उंचा स्थान दिया कहा कि जो मनुष्य मेरे दर्शन के पशचात् तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा उसकी यात्रा पूरी नहीं होगी। अत: श्रदालु आज भी भैरवनाथ के

 दर्शन को अवशय जाते हैं।




माता वैष्णो देवी की गुफा तक पहुचने का रास्ता 16 km लंबा है । चूंकि हमारे पास समय का अभाव नही था तो हम सबने पैदल ही चलने का निर्णय लिया ।श्राइन बोर्ड ने ये पूरा रास्ता इतना अच्छा बना दिया है आजकल की यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार की कोई कठिनाई का सवाल ही नही उठता । पूरे रास्ते मे आपकी जरूरत का हर समान उप्लब्ध है । खाने पीने से लेकर समस्त मेडिकल सुविधा दवाइया यात्रा के लिए घोड़े खच्चर पोर्टर पालकी आदि सभी 24 घंटे उपलब्ध मिलते हैं । 
आजकल तो पूरे रास्ते मे वायरलेस ऑडिओ स्पीकर भी लगा दिए गए हैं जिसमे अनवरत माता के भजन चलते रहते हैं जिन्हें  सुनके आप अपने अंदर एक अलग ही चेतना का अनुभव करेंगे ।

थोड़ा सा आराम और एक कोल्ड कॉफी तो बनती है यार
पैदल चलने के कारण दिमाग और शरीर दोनो ही थके हुए थे । रास्ते मे cafe coffee day दिखाई दिया तो हम रोक नही पाए अपने आप को और वहाँ बैठके एक घंटे का Break लीया।


थोड़ा मस्ती मज़ाक भी जरूरी होता है कई बार ।

और फिर हम चल पड़े आगे की ओर।



कहते हैं जैसे जैसे आप नजदीक पहुचेंगे थकान गायब होती जाती है और माता का चमत्कार ही है कि एक दैवीय शक्ति आपको अपनी ओर आकर्षित करेगी और आप अपने अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव करेंगे ।



और अंत मे एक ही बात निकलती है मन से की धरती पे कही स्वर्ग है तो यही है।
प्रेम से बोलो 
जय माता दी 



अब अगला पड़ाव था अमृतसर सो हम अगले दिन निकल पड़े कटरा के बस स्टैंड की ओर जहां अमृतसर की बस हमारा इंतेज़ार कर रही थी ।  दोपहर के भोजन पश्चात हम बस में बैठ गए जो हमें पठानकोट से होते हुए अमृतसर ले गयी 

श्री हरिमन्दिर साहिब जिसे दरबार साहिब या स्वर्ण मन्दिर भी कहा जाता है सिख धर्मावलंबियों का पावनतम धार्मिक स्थल या सबसे प्रमुख गुरुद्वारा है। यह भारत के राज्य पंजाब के अमृतसर शहर में स्थित है और यहाँ का सबसे बड़ा आकर्षण है। पूरा अमृतसर शहर स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ बसा हुआ है। स्वर्ण मंदिर में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। अमृतसर का नाम वास्तव में उस सरोवर के नाम पर रखा गया है जिसका निर्माण गुरु राम दास ने स्वय़ं अपने हाथों से किया था। यह गुरुद्वारा इसी सरोवर के बीचोबीच स्थित है। इस गुरुद्वारे का बाहरी हिस्सा सोने का बना हुआ है, इसलिए इसे स्वर्ण मंदिर अथवा गोल्डन टेंपल के नाम से भी जाना जाता है। श्री हरिमंदिर साहिब को दरबार साहिब के नाम से भी ख्याति हासिल है। यूँ तो यह सिखों का गुरुद्वारा है, लेकिन इसके नाम में मंदिर शब्द का जुड़ना यह स्पष्ट करता है कि भारत में सभी धर्मों को एक समान माना जाता है। इतना ही नहीं, श्री हरमंदिर साहिब की नींव भी एक मुसलमान ने ही रखी थी। इतिहास के मुताबिक सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी ने लाहौर के एक सूफी संत साईं मियां मीर जी से दिसंबर, 1588 में गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी। सिक्खों के लिए स्वर्ण मंदिर बहुत ही महत्वपूर्ण है। सिक्खों के अलावा भी बहुत से श्रद्धालु यहाँ आते हैं, जिनकी स्वर्ण मंदिर और सिक्ख धर्म में अटूट आस्था है।





जैसे ही हम रात को अमृतसर पहुचे बिना वक़्त गवाये सभी स्वर्ण मंदिर पहुचे और दर्शन किये । थकान तो बहुत थी पर सवर्ण मंदिर के अविस्मरणीय परिसर को छोड़के जाने का दिल नही कर रहा था । इस परिसर का निर्माण स्थापत्यकला का एक बेजोड़ उदाहरण है । 



संगमरमर से निर्मित ये पूरा परिसर हर पर्यटक को अपनी ओर आकर्षित करता है ।यहाँ के लंगर की सेवा पूरी दुनिया में मशहूर है जहाँ अमीर गरीब या कोई भी जात पात पूछे बिना सबकी सच्चे मन से सेवा की जाती है। ये वो जगह हैं जहाँ कोई भी भूखा नही सोता। 
शत शत नमन है इस सेवा को 

श्री वाहेगुरु जी दा ख़ालसा
श्री वाहेगुरु जी दी फ़तेह


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