Wednesday, June 28, 2017

Kinnaur Kailash

           
                           ll किन्नर कैलाश ll

यह हैं किन्नर कैलाश, कहते है महादेव के इस धाम में जाने की इंसान एक बार ही कर पाता है हिम्मत !!!
कहते है महादेव के इस धाम में जाने की इंसान एक बार ही कर पाता है हिम्मत – तिब्बत स्थित मानसरोवर कैलाश के बाद किन्नर कैलाश को ही दूसरा बडा कैलाश पर्वत माना जाता है।


सावन का महीना शुरू होते ही हिमाचल की खतरनाक कही जाने वाली किन्नर कैलाश यात्रा शुरू हो जाती है। इस यात्रा के बारे में कहा जाता है कि इस यात्रा को अपने जीवन काल में आम आदमी एक ही बार करने की हिम्मत जुटा पाता है।
इस स्थान को भगवान शिव शीतकालीन प्रवास स्थल माना जाता है। इस यात्रा के लिए देश भर से लाखों भक्त किन्नर कैलाश के दर्शन के लिए आते हैं। किन्नर कैलाश पर प्राकृतिक रूप से उगने वाले ब्रह्म कमल के हजारों पौधे देखे जा सकते हैं।


भगवान शिव की तपोस्थली किन्नौर के बौद्ध लोगों और हिंदू भक्तों की आस्था का केंद्र किन्नर कैलाश समुद्र तल से 24 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। किन्नर कैलाश स्थित शिवलिंग की ऊंचाई 40 फीट और चौड़ाई 16 फीट है।
हर वर्ष सैकड़ों शिव भक्त जुलाई व अगस्त में जंगल व खतरनाक दुर्गम मार्ग से हो कर किन्नर कैलाश पहुचते हैं। किन्नर कैलाश की यात्रा शुरू करने के लिए भक्तों को जिला मुख्यालय से करीब सात किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग-5 स्थित पोवारी से सतलुज नदी पार कर तंगलिंग गाव से हो कर जाना पडता है।


गणेश पार्क से करीब पाच सौ मीटर की दूरी पर पार्वती कुंड है। इस कुंड के बारे में मान्यता है कि इसमें श्रद्धा से सिक्का डाल दिया जाए तो मुराद पूरी होती है। भक्त इस कुंड में पवित्र स्नान करने के बाद करीब 24 घटे की कठिन राह पार कर किन्नर कैलाश स्थित शिवलिंग के दर्शन करने पहुचते हैं।
जो 24,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां 40 फीट ऊंचे शिवलिंग हैं। शिवलिंग की एक चमत्कारी बात यह है कि दिन में कई बार यह रंग बदलता है।

पहला दिनसंपादित करें

सबसे पहले सभी यात्रियों को इंडो तिब्‍बत बार्डर पुलिस (आई.टी.बी.पी.) पोस्‍ट पर यात्रा के लिए अपना पंजीकरण कराना होता है। यह पोस्‍ट 8,727 फीट की ऊंचाई पर स्थित है जो किन्‍नौर के जिला मुख्‍यालय रेकांग प्‍यो से 41 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। उसके बाद लांबार के लिए प्रस्‍थान करना होता है। यह 9,678 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। जो 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां जाने के लिए खच्‍चरों का सहारा लिया जा सकता है।

दूसरा दिनसंपादित करें

इसके उपरांत 11,319 फीट की ऊंचाई पर स्थित चारांग के लिए चढ़ाई करनी होती है। जिसमें कुल 8 घंटे लगते हैं। लांबार के बाद ज्‍यादा ऊंचाई के कारण पेड़ों की संख्‍या कम होती जाती है। चारांग गांव के शुरू होते ही सिंचाई और स्‍वास्‍थ्‍य विभाग का गेस्‍ट हाउस मिलता है, जिसके आसपास टेंट लगाकर भी विश्राम किया जा सकता है। इसके बाद 6 घंटे की चढ़ाई वाला ललांति (14,108) के लिए चढ़ाई शुरू हो जाती है।

तीसरा दिनसंपादित करें

चारांग से 2 किलोमीटर की ऊंचाई पर रंग्रिक तुंगमा का मंदिर स्थित है। इसके बारे में यह कहा जाता है कि बिना इस मंदिर के दर्शन किए हुए परिक्रमा अधुरी रहती है। इसके बद 14 घंटे लंबी चढ़ाई की शुरूआत हो जाती है।

चौथा दिनसंपादित करें

इस दिन एक ओर जहां ललांति दर्रे से चारांग दर्रे के लिए लंबी चढ़ाई करनी होती है, वहीं दूसरी ओर चितकुल देवी की दर्शन हेतु लंबी दूरी तक उतरना होता है।

                             हर हर महादेव 

Sunday, June 11, 2017

Amarkantak - A Hidden Heritage Of Central India

अमरकंटक मध्य प्रदेश में स्थित एक अलौकिके एवम धार्मिक आस्था से परिपूर्ण पर्यटन स्थल है जहाँ पहाड़ों के बीच घने जंगलों के दरख़्तों से गिरे सूखे पत्तों की खड़खड़ाहट रोमांचित करती है,जहाँ घने जंगलों मे साँय साँय करती हवा माहौल मे बिखरी पौराणिक कथायें हौले हौले आपके कानों मे फुसफुसाती हैं, घने जंगलों की ऊबड़ खाबड़ पगडंडियों के किनारे पर धूनी जमाये साधु जहाँ कबीर के भजन गाते सुनाई देते हैं, नर्मदा, सोन नदी नदी जोहिला नदियों के उद्गम से निकलने वाले पानी की कलकल ध्वनी के बीच जहाँ तहाँ मंदिर के घंटों की आध्यात्मिक संगीत के सुर सुनाई देते हैं.

आइये आपको ले चलते हैं हम एक ऐसे सफर पे जहा हर जगह रोमांच की एक अदभुत परिकल्पना का एहसास होता है ।

बिलासपुर स्टेशन से उतरके हमने गाड़ी वाले से बात की और कोटा रोड होते हुए आगे की ओर बढ़ चले अचानकमार जंगल की ओर

शाम के करीब 4 बजे के आसपास हमने वन्य क्षेत्र के अंदर प्रवेश किया तो अगल बगल की हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य को देख के मंत्र मुग्ध से हो गए । चिड़ियों के कलरवयुक्त गुंजन से मानो अंदर से ही एक संगीत की अनुभूति का एहसास पहली बार हुआ ।



अचानकमार अभ्यारण्य जैव विविधता एवं वन्य प्राणियां की प्रचुरता से पूर्ण है । यह अभ्यारण्य अपने आप में एक दर्शनीय स्थल है । 

अचानकमार वन्‍य जीवन अभयारण्‍य छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित एक वन्‍य जीवन अभयारण्‍य है। अचानकमार वन्‍य जीवन अभयारण्‍य को 1975 में तैयार किया गया था। इस अभयारण्य में वैसे तो विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तु पाए जाते हैं, किंतु यहाँ बाघों की संख्या सर्वाधिक है।
  • अचानकमार वन्‍य जीवन अभयारण्‍य 557.55 वर्ग किलो मीटर के क्षेत्रफल में फैला है।
  • बिलासपुर वन प्रभाग का उत्तर पश्चिमी वन विकास खण्‍ड, अचानकमार वन्‍य जीवन अभयारण्‍य भारत का एक समृद्ध अभयारण्‍य है।
  • अचानकमार वन्‍य जीवन अभयारण्‍य में अनेक प्रकार के वन्‍य जंतु जैसे चीतल, जंगली भालू, तेंदुआबाघ, चीते, पट्टीदार हाइना, केनिस ओरियस भेडिया, स्‍लॉथ बीयर, मेलुरसस, अर्सीनस, भारतीय जंगली कुत्ते, कोऑन, अलपिन्‍स, चीतल, चार सींग वाले एंटीलॉप, नील गाय, बोसेलाफस, ट्रेगोकेमेलस, चिंकारा
  • ब्‍लैक बक, जंगली सूअर और अन्‍य अनेक पाए जाते हैं।



पूरे जंगल में साल, साजा, बीजा और बांस के पेड़ भारी संख्‍या में पाये जाते हैं। घोंगापानी जलाशय अभयारण्य के रास्ते पर स्थित एक बांध है। पर्यटकों को वहाँ रहने के लिए कोई विकल्प नहीं है। दिन में बांध का दृश्‍य मोहक लगता है। वन्‍यजीव अभयारण्‍य अचनकमार, कोएंजी और लमनी के आगे सरकारी अतिथि गृह भी है।
उसकी देख-रेख अच्‍छी तरह की जाती है और लमनी में फॉरेस्‍ट गेस्‍ट हाउस का निर्माण तो ब्रिटिश काल के दौरान किया गया था। बेलघना रेलवे स्‍टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन है, लेकिन बिलासपुर ज्‍यादा सुलभ है। किराए की कार और बस के अलावा पर्यटक किसी अन्य वाहन से इस अभयारण्य तक पहुँच सकते हैं।



छत्तीसगढ़ में बाघों की तादाद अब लगभग दोगुनी हो गई है। वन्यजीवों की गिनती के ताजा आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के जंगलों में 46 बाघ पाए गए हैं, जबकि 2010 से पहले यह संख्या 26 पर टिकी हुई थी। बाघों की गिनती के लिए प्रदेश में अचानकमार के साथ ही इंद्रावती और उदंती सीतानदी अभयारण्य को चुना गया था।
छत्तीसगढ़ में बाघों की स्थिति
2006 में 26 बाघ
2010 में 26 बाघ
2014 में 46 बाघ
ऐसे बढ़ा बाघों का कुनबा
कभी बाघों के लिए स्वर्ग रहे छत्तीसगढ़ के जंगल डेढ़ दशक में वनराज के लिए अच्छे नहीं रहे। वर्ष 2006 में प्रदेश में 26 बाघ पाए गए। इसके बाद 2010 में हुई गणना में बाघों का कुनबा नहीं बढ़ पाया। चार साल के अंतराल में होने वाली गणना में इस बार बाघों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई।

इस घने जंगल मे ऐसे तो सब ठीक ही चलता रहता है पर जब कुछ गलत होना होता है तो ऐसे होता हैं कि अच्छे भले व्यक्ति की बुद्धि काम न करे । 

ऐसा ही कुछ हमारे साथ भी हुआ ।

अंधेरा होने को था और गाड़ी का टायर पंक्चर हो गया और मज़े की बात ये की एक्सट्रा टायर भी नही था हमारे पास तो ड्राइवर वहाँ से 5 किलोमीटर दूर केंवची में टायर बनवाने चला गया और हम एक अजीब सी आशंका के साथ वही रुके रहे । 


सुना है वन्य जीव आग से डरके पास नही आते तो हम उस वीरान जगह पे लकड़ियां एकत्र करके आग जलाने की तैयारी में लग गए । सबने आसपास की लकडियो को इकठ्ठा किया और मैं जलाने लगा ।


ठंड इतनी ज्यादा थी वहाँ कि जिसको आग के नजदीक जहा जगह मिली वही बैठ गया । मैं आपको बता नही सकता कि वो शाम हमारे लिए सदा के लिये अविस्मरणीय थी क्योंकि एक तरफ वीरान जंगल और जानवरों का डर अलग ।


इन परिस्थितियों में कहा नही जा सकता आपको कब क्या देखने को मिल जाये ।

3 घंटों के बाद ड्राइवर आया तो हमने चैन की सांस ली और हम फिर आगे बढ़ चले अमरकंटक की ओर जहां के कल्याण सेवा आश्रम में हमारा रुकने का इंतेज़ाम था।


सन १९७८ में अक्षय तृतीया के दिन बाबा कल्याण दास जी ने "कल्याण सेवा आश्रम" की नींव रखी. कल्याण सेवा आश्रम ट्रस्ट ने सन १९८१ से औपचारिक रूप से कार्य करना प्रारंभ किया. १५ मई सन १९८४- बैसाख पूर्णिमा के दिन "आचार्य पीठ" की स्थापना की गयी.महाराजा रीवा श्री मार्तंड सिंह जूदेव के मुख्य आतिथ्य में आश्रम में माँ नर्मदा की पावन प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गयी. इस अवसर को समस्त भारत के संतो का सानिध्य एवं आशीर्वाद प्राप्त हुआ. 

इस आश्रम की साफ सफाई और खासकर सेवा भावना हर तरफ प्रसिद्व है । कहते हैं कि आप अमरकंटक आये और यहाँ न आये तो आपकी यात्रा व्यर्थ है । 


सुबह सुबह नहा धोकर हमने आश्रम में स्थित मंदिर में दर्शन किये और आरती का भी आनंद उठाया। यह आश्रम अपने आप मे ही किसी पर्यटन स्थल से कम नही है ।

अब बारी थी सुबह की कड़कड़ाती ठंड में बाहर निकालके कुछ पेट पूजा की।


ये मुँह से भाँप जब तक न निकले मज़ा ही नही आता पहाड़ो पे जाने का । क्यूँ ? ठीक कहा न 


कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा तो यहाँ पे मैं कहना चाहूंगा कि कांपते को लकड़ी का सहारा । इसी आग को तापते हुए यहाँ का पारंपरिक पोहा जलेबी का नाश्ता मिला तो मानो जैसे जान में जान आयी ।

अब समय था इस आध्यत्म की नगरी के दर्शन का 


माँ नर्मदा जी का मंदिर

नर्मदा नदी का उद्गम स्थल – नर्मदा नदी जिसे भारतीय सभ्यता मे गंगा नदी से भी उपर माना गया है । नर्मदा, जिसे माँ रेवा के नाम से भी जाना जाता है| और माँ क्यूँ कहा जाता है, ये बात गुजरात, मध्य प्रदेश, और छत्तीसगढ़ के बियाबान जंगलों के गर्मी से तपते हुए ‘आदिवासियों’ से बेहतर कोई नहीं जानता |

यही से नर्मदा नदी का उद्गम हुआ है जो कि आगे जाकर बड़ा ही विशाल रूप धारण कर लेती है । 


मंदिर में स्थित इस हाथी की प्रतिमा के बारे में कहते हैं कि जो व्यक्ति इसके निचे से पार हो जाता है उसने जीवन मे कभी कोई पाप नही किया है । अब असल बात क्या है ये हमने जानने की कोशिश नही की और बढ़ गए अपने अगले पड़ाव कपिलधारा की ओर 


कपिलधारा जल प्रपात जिसे दूग्ध धारा भी कहते हैं वहाँ पहुचकर हमने इस अप्रतिम सौंदर्य का जी भर के मज़ा लिया ।


ईस मनोहारी दृश्य का वर्णन शब्दो मे कर पाना बहुत ही कठिन है । जो यहां आता है वही समझ पाता है इस अलौकिक अदभुत सौंदर्य को 

यात्रा का अंतिम पड़ाव है जैन मंदिर जिसका निर्माण अभी ज़ारी है 


यह मंदिर भारत के अद्वितीय मंदिरों में अपना स्‍थान रखता है। इस मंदिर को बनाने में सीमेंट और लोहे का इस्‍तेमाल नहीं किया गया है। मंदिर में स्‍थापित मूर्ति का वजन 24 टन के करीब है।


यहाँ से निकल के किसी ने हमें जालेश्वर महादेब मंदिर के बारे में बताया तो उत्सुकता वश हम लौटते हुए वहाँ के लिये चल पड़े 


श्री ज्‍वालेश्‍वर महादेव मंदिर अमरकंटक से 8 किलोमीटर दूर शहडोल रोड पर स्थित है। यह खूबसूरत मंदिर भगवान शिव का समर्पित है। यहीं से अमरकंटक की तीसरी नदी जोहिला नदी की उत्‍पत्ति होती है। विन्‍ध्‍य वैभव के अनुसार भगवान शिव ने यहां स्‍वयं अपने हाथों से शिवलिंग स्‍थापित किया था और मैकाल की पह‍ाडि़यों में असंख्‍य शिवलिंग के रूप में बिखर गए थे। पुराणों में इस स्‍थान को महा रूद्र मेरू कहा गया है। माना जाता है कि भगवान शिव अपनी पत्‍नी पार्वती से साथ इस रमणीय स्‍थान पर निवास करते थे। 


अब यहाँ से हम सभी लौट चले थे अपने साथ कभी न भुलाई जा सकने वाली मीठी मीठी यादों के साथ । अमरकंटक की इन शांत हसीन और अलौकिक वादियों में हर कोई दोबारा आना जरूर चाहेगा ।


हर हर महादेव 
जय नर्मदे मैया







Saturday, June 10, 2017

The Beauty Of Sikkim


किसी पर्यटनस्थल पर घूमने जाना हमेशा ही एक रोमांचकारी अनुभव होता है । जब आप वापस लौटते हैं तो अकेले नही होते । आपके साथ यादों का संग्रह होता है जो कि जीवन भर आपके साथ रहता है ।
पर ऐसी कौन सी जगह हो सकती है जो इतनी आकर्षक हो कि कुछ शब्द ही उसे अदभुत अविस्मरणीय बना दे । जी हां हम बात कर रहे हैं सिक्किम राज्य की जो अपनी अलौकिक सुंदरता के लिए हर साल लाखों पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है ।


गंगटोक का नजदीकी रेलवे स्टेशन न्यू जलपाईगुड़ी है जो गंगटोक से 148 किलोमीटर है। यहां से बस और टैक्सी आदि की अच्छी व्यवस्था है। अगर आप हवाई यात्रा करना चाहते हैं तो यहां के निकटतम हवाई अड्डा बागडोगरा पहुंच सकते हैं, जहां के लिए दिल्ली समेत देश के तमाम प्रमुख शहरों के हवाई अड्डों से नियमित उड़ानें हैं।
हम सुबह सिलीगुड़ी स्टेशन पर उतरे और सीधा रवाना हो चले गैंगटॉक के लिए । ध्यान रहे स्टेशन पर बहुत से टूर ऑपरेटर आपको पैकेज के नाम पर ठगने की कोशिश करेंगे पर आप उनकी बातों पे ध्यान बिल्कुल मत दीजिए और सीधे गंगटोक जाइये 



रास्ते मे हम सभी ने एक बात बड़ी गौर की वो ये कि यहाँ के लोग बड़े साफ सफ़ाई पसंद हैं । सिलीगुड़ी से गैंगटॉक के 3 घंटे के सफर में कही भी गंदगी नही दिखाई देती ।



तीस्ता नदी के किनारे किनारे होता हुआ ये सफर मन मे एक नई ताज़गी भरता प्रतीत हो रहा था । जैसे जैसे सफर आगे बढ़ रहा था में उत्सुकता भी बढ़ती ही जा रही थी। 



यह राज्य घने वनो से घिरा है | यहां साल, सेमल के वृक्षों की सघनता है | यहां पर्वत 700 मीटर से भी अधिक ऊँचे है | यहां स्थित कंचनजंघा (8579 मीटर) विश्व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी है | 125 से मी. वर्षा होती है | राज्य में तीस्ता नदी तथा उसकी सहायक नदियां बहती है | सिक्किम में ओर्किड नस्ल के सैकड़ो किस्म के पेड़ पौधे की 4000 से ज्यादा किस्में मिलती है |
राज्य की अर्थव्यवस्था मूलरुप से कृषि पर आधारित है | मक्का, चावल, गेहूं, बड़ी इलायची, अदरक और संतरा राज्य की मुख्य फसलें हैं | भारत में बड़ी इलायची का सबसे बड़ा उत्पादन राज्य सिक्किम है | राज्य की कुल भूमि का सिर्फ 10 से 12 प्रतिशत क्षेत्र ही कृषि के लिए उपलब्ध है | इस समय यहां व्यावसायिक और  बागवानी फसलों के उत्पादन पर अधिक जोर दिया जा रहा है |


सिक्किम राज्य में प्रवेश करते समय कोई विशेष असुविधा नही होती । यह बॉर्डर पे भी हमारा बड़े ही हँसमुख अंदाज में स्वागत किया गया। अतिथि देवो भवः क्यों कहा जाता है किसीको देखना है तो यहाँ आके देखें।


हमारी होटल पहले से बुक थी तो कुछ खास परेशानी नही उठानी पड़ी। गंगटोक के सारे ड्राइवर भी बहुत सहयोगी प्रवित्ति के हैं तो आप हमेशा निश्चिंत रहें कि कोई ठगने की कोशिश करेगा।  

सबने फ्रेश होकर मॉल रोड जाने का सोचा और निकल पड़े ।

गैंगटॉक का मॉल रोड M.G. Marg के नाम से भी जाना जाता जाता है । असल मे ये दो अलग अलग मार्किट का सम्मिश्रण है । ऊपर मॉल रोड और नीचे की तरफ लाल मार्केट। 

यहाँ की खूबसूरती का अपना एक अलग ही अंदाज़ है । पाश्चात्य संस्कृति की एक अलग झलक यहाँ हर तरफ देखने को मिलती है । आप एक पल के लिए ये भूल भी सकते हैं कि आप अपने ही देश मे हैं या कही और 


 


Harley Davidson Rocks Yaar 

अगले दिन हमको नाथुला बॉर्डर और बाबा श्री हरभजन सिंह मंदिर के लिए सुबह जल्दी उठना था तो हम वापस होटल के लिए रवाना हो गए ।

बड़ा ही मनमोहक सफर था ये नाथुला बॉर्डर का । जैसे जैसे ऊपर की ओर आप बढ़ेंगे ठंड बढ़ती जाएगी और ऑक्सिजन लेवल कम होता जाएगा । 

रास्ते मे कुछ संवेदनशील क्षेत्र भी आते हैं तो सुरक्षा कारणों की वजह से हम तस्वीरे नही ले पाए।



मस्तियाते हुए पहाड़ो में रुक रुक के आगे बढ़ना कौन छोड़ता है भाई ।




रास्ते मे पड़ने वाली चंगु लेक और उसके किनारे खड़ी बहुत सी याक ने फिर हमारा ध्यान खींचा और गाड़ी रोकने पे मजबूर कर दिया। 



यूँ तो  प्राकृतिक विविधताओं  से भरे इस राज्य में कई  नयनाभिराम दृश्य  और  परिदृश्य देखने को मिल जायेंगे, किन्तु नाथुला  दर्रा  ही एकमात्र  जगह है जहाँ हर प्रकार के पर्यटक जरूर  जाना चाहते हैं। मुझे इसकी दो वजहें  जान पड़ती हैं।  एक तो इसका सिक्किम की राजधानी गान्तोक से नजदीक होना (मात्र ५८ किमी ) और दूसरी  यह कि यही वह जगह है जो कभी सिल्क रूट के नाम से पूरी दुनिया में विख्यात था। वही सिल्क रूट, जिससे होते हुए  ह्वेनसांग , फाहियान और मार्कोपोलो भारत आये थे और बौद्ध धर्म दुनिया के दूसरे हिस्सों तक पहुँचा था। नाथुला दरअसल हिमालय का एक पहाड़ी दर्रा है जो भारत के सिक्किम और तिब्बत की चुम्बी घाटी को जोड़ता है। नाथुला दो तिब्बती शब्द नाथु (Listening Ears) और ला (Pass) से मिलकर बना है। १९६२ ई. के भारत -चीन युद्ध के बाद नाथुला मार्ग को व्यापार के लिए बंद कर दिया गया था , जिसे २००६ ई. में दुबारा खोला गया।
कहते हैं कि  अगर आप सिक्किम में हैं तो आपको नाथुला दर्रा तो जाना ही चाहिए। फिर हमारा तो ठिकाना ही गान्तोक था। मित्रों और सहकर्मियों से नाथुला की तारीफें सुन-सुन कर हमने सोचा कि हम भी भला क्यों पीछे रहें। चल पड़े यात्रा परमिट  प्राप्त करने केलिए टूरिज्म डिपार्टमेंट के ऑफिस, जो एम जी मार्ग के आरम्भ में ही  है।  परमिट के लिए दो पासपोर्ट साइज के फोटोग्राफ और एक आईडी प्रूफ की जरुरत पड़ती है। सोमवार और मंगलवार को छोड़कर बाकी किसी भी दिन आप नाथुला जा सकते हैं। और हाँ, परमिट सफर के  एक दिन पहले जरूर ले लें।



ऐसी विषम परिस्थितियों में भी सीमा के प्रहरियों को मुस्तैदी से डंटा देख उन्हें सलाम करने का मन हुआ  और हमारी खुशकिस्मती थी कि उनके प्रति आभार और सम्मान व्यक्त करने का अवसर भी मिला। हमारे जाँबाज़ सिपाही जान पे खेल के ना सिर्फ सीमा की सुरक्षा करते हैं, बल्कि हम जैसे यात्रियों की सुविधा का भी ख्याल रखते हैं। तभी तो वहां भोजनालय और आपातकालीन चिकित्सा इकाई की भी व्यवस्था थी और बिगड़ते मौसम को ले कर वापस लौटने की चेतावनी भी दी जा रही थी।


अब हमारा अगला पड़ाव था विश्व प्रसिद्ध बाबा श्री हरभजन सिंह जी का मंदिर जो कि नाथुला से बस कुछ ही दूरी पे मोजूद है । बस फिर क्या था बिना वक़्त गवाये हम निकल पड़े इस मंदिर के रहस्य का पता लगाने 



क्या कोई सैनिक मृत्यु पश्चात भी अपनी ड्यूटी कर सकता है ? क्या किसी मृत सैनिक की आत्मा, अपना कर्तव्य निभाते हुए देश की सीमा की रक्षा कर सकती है ? आप सब को यह सवाल अजीब से लग सकते है, आप सब कह सकते है की भला ऐसा कैसे मुमकिन है ? 


30 अगस्त 1946 को जन्मे बाबा हरभजन सिंह, 9 फरवरी 1966 को भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे. 1968 में वो 23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम में सेवारत थे. 4 अक्टूबर 1968 को खच्चरों का काफिला ले जाते वक्त पूर्वी सिक्किम के नाथू ला पास के पास उनका पांव फिसल गया और घाटी में गिरने से उनकी मृत्यु हो गई. पानी का तेज बहाव उनके शरीर को बहाकर 2 किलोमीटर दूर ले गया. कहा जाता है कि उन्होंने अपने साथी सैनिक के सपने में आकर अपने शरीर के बारे में जानकारी दी. खोजबीन करने पर तीन दिन बाद भारतीय सेना को बाबा हरभजन सिंह का पार्थिव शरीर उसी जगह मिल गया.


 बाबा के मंदिर में बाबा के जूते और बाकी सामान रखा गया है. भारतीय सेना के जवान बाबा के मंदिर की चौकीदारी करते हैं. और रोजाना उनके जूते पॉलिश करते हैं, उनकी वर्दी साफ करते हैं, और उनका बिस्तर भी लगाते हैं. वहां तैनात सिपाहियों का कहना है कि साफ किए हुए जूतों पर कीचड़ लगी होती है और उनके बिस्तर पर सिलवटें देखी जाती हैं. बाबा की आत्मा से जुड़ी बातें भारत ही नहीं चीन की सेना भी बताती है. चीनी सिपाहियों ने भी, उनको घोड़े पर सवार होकर रात में गश्त लगाने की पुष्टि की है. भारत और चीन आज भी बाबा हरभजन के होने पर यकीन करते हैं. और इसीलिए दोनों देशों की हर फ्लैग मीटिंग पर एक कुर्सी बाबा हरभजन के नाम की भी रखी जाती है. 


कहा जाता है कि मृत्यु के बाद भी बाबा हरभजन सिंह नाथु ला के आस-पास चीन सेना की गतिविधियों की जानकारी अपने मित्रों को सपनों में देते रहे, जो हमेशा सच साबित होती थीं. और इसी तथ्य के आधार पर उनको मरणोपरांत भी भारतीय सेना की सेवा में रखा गया. उनकी मौत को 48 साल हो चुके हैं लेकिन आज भी बाबा हरभजन सिंह की आत्मा भारतीय सेना में अपना कर्तव्य निभा रही है. बाबा हरभजन सिंह को नाथू ला का हीरो भी कहा जाता है.


शाम ढलते ही हम सब वापस गैंगटॉक की ओर वापस चल पड़े क्योंकि ठंड इतनी ज्यादा बढ़ चुकी थी कि किसी मे हिम्मत नही बची थी और कही घूमने फिरने की 

रात को होटल पहुँचके आराम किया और अगले दिन का प्लान बनाया जो कि अभी तक का सबसे मजेदार प्लान था ।

Sikkim Darshan On Royal Enfield 


गैंगटॉक के बुरतुक हेलिपैड एरिया में बाइक बड़ी आसानी से मिल जाती हैं । इसके लिए आपको 10000/- डिपॉजिट देने होते हैं और एक दिन का 1500/- चार्ज किया जाता है ।

पहाड़ियों में बाइक राइडिंग करने के लिए हमेशा आप सुनिश्चित कर लें कि कौन सा मॉडल आपके लिए अनुकूल है ये जानना बहुत जरूरी है कि किस मॉडल में आपको ज्यादा आराम है

काफी सोच समझके मैंने Royal Enfield का 500 CC मॉडल पसंद किया क्योंकि इसकी कम्फर्ट और pickup पहले से आजमाई हुई है । 

Bike बोले तो Only Royal Enfield 


उस दिन सिर्फ गंगटोक की स्थानीय जगहों का दौरा किया 


बाइक का लुत्फ कोई छोड़ता है क्या भाई


कोई कुछ नही बोलेगा बॉस 


Beauty Is Everywhere 


Local Sightseeing 


दुनिया के हर प्रकार के फूलों का संग्रह 




वापसी की तैयारी में दोस्त लोग गेट पे इंतेज़ार करते हुए ।

अगले दिन हमारी यात्रा का अंतिम पड़ाव था नामची तीर्थ जो 12 ज्योतिर्लिंग का सम्मिश्रण करके बनाया गया सिक्किम का विश्वप्रसिद्ध तीर्थ है ।


नामची तीर्थ 

नामची सिक्किम प्रदेश में सोलोफोक पहाड़ी पर स्थित चारधाम भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों की एक ही जगह समेट कर पर बनायी गयी प्रतिकृति है। यहां पर भारत के चारों कोनों में स्थित चार धाम, जैसे रामेश्वरम, सोमनाथ, पुरी और बद्रीनाथ और पूरे भारतखंड में स्थित 12 ज्योतिर्लिंग शामिल हैं। सिद्धेश्वर धाम के नाम से जाने इस स्थल के आकर्षण का शिखर बिन्दु भगवान शिव की ऊँची-लंबी प्रतिमा है।
दक्षिण सिक्किम में बसा हुआ, सिक्किम के दक्षिण जिले का जिला मुख्यालय होने के बावजूद नामची एक छोटा सा शहर है। रंगीत नदी के किनारे बसे बाईगुने में कुछ सुंदर दिन बिताने के बाद हम नामची की ओर बढ़े। हमारे लिए नामची के दौरे का सबसे बड़ा आकर्षण यहां की सोलोफोक पहाड़ी पर स्थित चारधाम या सिद्धेश्वर धाम था। हमसे एक दिन पहले जो लोग पहाड़ी का दौरा कर आए थे उनसे हमने इस तीर्थ स्थल के बारे में बहुत सुना था। हम वहाँ के नवनिर्मित परिसर, जो सिक्किम पर्यटन का पसंदीदा गंतव्य बन चुका था, को देखने के लिए सबसे ज्यादा उत्साहित थे।



ऊंची पहाड़ी पर स्थित होने के कारण मेघ हमेशा इस अद्वितीय तीर्थ यात्रा का हिस्सा बनते हैं। इन बादलों के बीच से गुजरते हुए आप मंदिरों और भगवान शिव की मूर्ति को बादलों के बीच से उभरते हुए देख सकते हैं 


शौक भी बड़ी अजीब चीज है ना । गैंगटॉक जैसे पहाड़ी इलाके में सुबह के 6 बजे कड़कड़ाती ठंड में हम चल पड़े नामची के लिए । दो दो जैकेट , टोपी ,ग्लोब्स भी ठंड को रोकने में नाकाम थे पर शौक के आगे किसका बस चलता है ।


गंगटोक से नामची का रास्ता पूरा चाय के बागानों से होकर गुजरता है तो इस अप्रतिम सौंदर्य के बारे में मैं कुछ ज्यादा नही कहना चाहूंगा आप सभी समझदार हैं ।

थकना जरूरी है 


समय के अभाव में हम राबोंग ला नही जाए जो उसी रास्ते मे पड़ता है ।


स्वर्ग से सुंदर नामची तीर्थ जो कि हमारी यात्रा का अंतिम पड़ाव था पहुँचके मन मे एक अलौकिक शांति का एहसास होता है जो कि पहुचने वाला ही समझ सकता है । कुछ चीजों को शब्दों में नही पिरोया जा सकता



नामची में बना ये श्री साईंबाबा का मंदिर 


मुसाफिर हु यारो 


मोनेस्ट्री

यात्रा के अंतिम चरण में सारे पलों को अपने कैमरे में सहेजते दोस्त 



It's Time For Home Sweet Home 


क्या खूबसूरत बात कही है 




वापसी में रुक कर एक चाय तो बनती ही है खासकर तब जब आप बगानों के बीच से गुजर रहे हों




Life Is All About An Endless Journey 





ये रास्ता अब हमको ले चला है अपने घर की ओर 

अलविदा दोस्तो