Monday, July 3, 2017

About Lord Shiva - Unknown But Not Hidden



भगवान शिव की पत्नी और बच्चों के बारे में सभी जानते हैं लेकिन क्या आपको ये पता है कि शिवजी की एक बहन भी थीं. एक पौराणिक कथा के अनुसार जब देवी पार्वती ने भगवान शिव से विवाह किया तो वह खुद को घर में अकेला महसूस करती थीं. उनकी इच्छा थी कि काश उनकी भी एक ननद होती जिससे उनका मन लगा रहता लेकिन भगवान शिव तो अजन्मे थे. 
भगवान शिव तो अन्तर्यामी हैं, उन्होंने देवी पार्वती के मन की बात जान ली. उन्होंने पार्वती से पूछा कोई समस्या है देवी? तब पार्वती ने कहा कि काश उनकी भी कोई ननद होती.
भगवान शिव ने कहा मैं तुम्हें ननद तो लाकर दे दूं लेकिन क्या ननद के साथ आपकी बनेगी. पार्वती जी ने कहा कि भला ननद से मेरी क्यों न बनेगी. भगवान शिव ने कहा ठीक है देवी, मैं तुम्हें एक ननद लाकर दे देता हूं. भगवान शिव ने अपनी माया से एक देवी को उत्पन्न कर दिया. भगवान शिव ने कहा कि यह लो तुम्हारी ननद आ गयी. इनका नाम असावरी देवी है.


देवी पार्वती अपनी ननद को देखकर बड़ी खुश हुईं. असावरी देवी स्नान करके आईं और भोजन मांगने लगीं. देवी पार्वती ने भोजन परोस दिया. जब असावरी देवी ने खाना शुरू किया तो पार्वती के भंडार में जो कुछ भी था सब खा गईं और महादेव के लिए कुछ भी नहीं बचा. इससे पार्वती दुःखी हो गईं. इसके बाद जब देवी पार्वती ने ननद को पहनने के लिए नए वस्त्र दिए तो मोटी असावरी देवी के लिए वह वस्त्र छोटे पड़ गए. पार्वती उनके लिए दूसरे वस्त्र का इंतजाम करने लगीं.
इस बीच ननद रानी को अचानक मजाक सूझा और उन्होंने अपने पैरों की दरारों में पार्वती जी को छुपा लिया. पार्वती जी का दम घुटने लगा. महादेव ने जब असावरी देवी से पार्वती के बारे में पूछा तो असावरी देवी ने झूठ बोला. जब शिव जी ने कहा कि कहीं ये तुम्हारी बदमाशी तो नहीं, असावरी देवी हंसने लगीं और जमीन पर पांव पटक दिया. इससे पैर की दरारों में दबी देवी पार्वती बाहर आ गिरीं.
उधर ननद के व्यवहार से देवी पार्वती का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. देवी पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि कृपया ननद को जल्दी से ससुराल भेजने की कृपा करें. मुझसे बड़ी भूल हुई कि मैंने ननद की चाह की. इस पर भगवान शिव ने असावरी देवी को कैलाश से विदा कर दिया.



श‌िव जी का त्र‌िशूल 
भगवान श‌िव सर्वश्रेष्ठ सभी प्रकार के अस्‍त्र-शस्‍त्रों के ज्ञाता हैं लेक‌िन पौराण‌िक कथाओं में इनके दो प्रमुख अस्‍त्रों का ज‌िक्र आता है एक धनुष और दूसरा त्र‌िशूल। भगवान श‌िव के धनुष के बारे में तो यह कथा है क‌ि इसका आव‌िष्कार स्वयं श‌िव जी ने क‌िया था। लेक‌िन त्र‌िशूल कैसे इनके पास आया इस व‌िषय में कोई कथा नहीं है। माना जाता है क‌ि सृष्ट‌ि के आरंभ में ब्रह्मनाद से जब श‌िव प्रकट हुए तो साथ ही रज, तम, सत यह तीनों गुण भी प्रकट हुए। यही तीनों गुण श‌िव जी के तीन शूल यानी त्र‌िशूल बने। इनके बीच सांमजस्य बनाए बगैर सृष्ट‌ि का संचालन कठ‌िन था। इसल‌िए श‌िव ने त्र‌िशूल रूप में इन तीनों गुणों को अपने हाथों में धारण क‌िया।

जानें कैसे आया श‌िव के हाथों में डमरू 
भगवन श‌िव के हाथों में डमरू आने की कहानी बड़ी ही रोचक है। सृष्ट‌ि के आरंभ में जब देवी सरस्वती प्रकट हुई तब देवी ने अपनी वीणा के स्वर से सष्ट‌ि में ध्वन‌ि जो जन्म द‌िया। लेक‌िन यह ध्वन‌ि सुर और संगीत व‌िहीन थी। उस समय भगवान श‌िव ने नृत्य करते हुए चौदह बार डमरू बजाए और इस ध्वन‌ि से व्याकरण और संगीत के धन्द, ताल का जन्म हुआ। कहते हैं क‌ि डमरू ब्रह्म का स्वरूप है जो दूर से व‌िस्‍तृत नजर आता है लेक‌िन जैसे-जैसे ब्रह्म के करीब पहुंचते हैं वह संकु‌च‌ित हो दूसरे स‌िरे से म‌िल जाता है और फ‌िर व‌िशालता की ओर बढ़ता है। सृष्ट‌ि में संतुलन के ल‌िए इसे भी भगवान श‌िव अपने साथ लेकर प्रकट हुए थे।




श‌िव के गले में व‌िषधर नाग कहां से आया 
भगवान श‌िव के साथ हमेशा नाग होता है। इस नाग का नाम है वासुकी। इस नाग के बारे में पुराणों में बताया गया है क‌ि यह नागों के राजा हैं और नागलोक पर इनका शासन है। सागर मंथन के समय इन्होंने रस्सी का काम क‌िया था ज‌िससे सागर को मथा गया था। कहते हैं क‌ि वासुकी नाग श‌िव के परम भक्त थे। इनकी भक्त‌ि से प्रसन्न होकर श‌िव जी ने इन्हें नागलोक का राजा बना द‌िया और साथ ही अपने गले में आभूषण की भांत‌ि ल‌िपटे रहने का वरदान द‌िया।

श‌िव के स‌िर पर चन्द्र कैसे पहुंचे 
श‌िव पुराण के अनुसार चन्द्रमा का व‌िवाह दक्ष प्रजापत‌ि की 27 कन्याओं से हुआ था। यह कन्‍याएं 27 नक्षत्र हैं। इनमें चन्द्रमा रोह‌िणी से व‌िशेष स्नेह करते थे। इसकी श‌िकायत जब अन्य कन्याओं ने दक्ष से की तो दक्ष ने चन्द्रमा को क्षय होने का शाप दे द‌िया। इस शाप बचने के ल‌िए चन्द्रमा ने भगवान श‌िव की तपस्या की। चन्द्रमा की तपस्या से प्रसन्न होकर श‌िव जी ने चन्द्रमा के प्राण बचाए और उन्हें अपने श‌‌ीश पर स्‍थान द‌िया। जहां चन्द्रमा ने तपस्या की थी वह स्‍थान सोमनाथ कहलाता है। मान्यता है क‌ि दक्ष के शाप से ही चन्द्रमा घटता बढ़ता रहता है।


1. शिव को प्रसन्न करने के लिए डमरू जरूर बजाएं और बम बम भोले बम बम भोले कहने से कृपा मिलेगी.
2. बिल्व पत्र व बिल्व फल चढाने से धन की प्राप्ति के साथ साथ शिव को सरलता से रिझाया जा सकता है.
3. शिवरात्रि पर धतुरा,भांग,और आक चढ़ना शिव की पूरी साधना करने के बराबर फलदायी होता हैं.
4. शिवलिंग को प्रतिष्ठित कर करें शिवलिंग का पूजन तो जीवन सफल हो जाता है.
5. ज्ञान एवं विद्वत्ता की इच्छा वाले साधकों को स्फटिक के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए.
6. गृहस्थ सुख चाहने वालों को पत्थर के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए.
7. मुकद्दमों एवं युद्ध में प्रतियोगिताओं में सफलता पाने वालों को अष्ट धातु शिवलिंग का पूजन करना चाहिए.
8. सब सुख चाहने वाले को सोने चांदी अथवा रत्नों से बना शिवलिंग पूजना चाहिए.


9. सबसे श्रेष्ठ तो केवल पारे का शिवलिंग होता है जिसकी पूजा से जन्म मरण से मुक्ति प्राप्त होती है शिव की अमोघ कृपा बरसती है.
10. शिवरात्री के दिन शिव मंदिर के दर्शन, कैलाश मानसरोवर के दर्शन, शिवभक्तों के दर्शन अथवा सुमिरम से शिव भोले बरदान देते हैं.
11. शिवरात्रि को शिवपुराण की पूजा और पाठ से शिव प्रसन्न हो कर अपने भक्त के साथ साथ रहने लगते हैं. इस पुराण में 24,000 श्लोक है तथा इसके क्रमश: 6 खण्ड है
पहला खंड -विद्येश्वर संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से समस्त भयों और अपशकुनो का नाश होता है.
दूसरा खंड-रुद्र संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से अकाल मृत्यु टलती है और ज्ञान प्राप्त होता है.
तीसरा खंड- कोटिरुद्र संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से भौतिक सुखों के साथ साथ अद्यात्म का ज्ञान भी मिलता है.
चौथा खंड- उमा संहिता कहलाता है-जिसके पाठ से शक्ति सिद्धियाँ तो मिलती ही हैं मायाजाल से बक्त मुक्त हो जाता है.
पांचवा खंड- कैलाश संहिता-जिसके पाठ से साधक मानव योनी से उपार हो कर शिव का गण हो जाता है तीनो लोकों में उसे निर्भयता प्राप्त होती है.
छठा खंड- वायु संहिता-जिसके पाठ से धार अर्थ काम सहित मोक्षः मिलता है साधक शिव में समाहित हो पूरण हो जाता है.
12. शिव को स्तुति प्रिय है अतः स्तुतियों से करें शिव आराधना
शिव सहस्त्रनामावली का पाठ करें
शिव की सबसे प्रचलित स्तुति है
ॐ कर्पूर गौरं करुणावतारं
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं
सदा वसन्तं हृदयारवृन्दे
भवं भवानी सहितं नमामि !!
13. देव, दनुज, ऋषि, महर्षि, योगीन्द्र, मुनीन्द्र, सिद्ध, गन्धर्व सब शिव को गा कर प्रसन्न करते है
रुद्राष्टक, पंचाक्षर, मानस, द्वादश ज्योतिर्लिंग जैसे स्तोत्रों का पाठ करने से अद्भुत कृपा प्राप्त होगी.
संस्कृत स्तोत्र शीग्र फलदायी होते हैं.


शिवजी की आरती (Shri Shiv Ji Ki Aarti in Hindi)
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारं |
सदा वसन्तं ह्रदयाविन्दे भंव भवानी सहितं नमामि ॥
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा |
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
एकानन चतुरानन पंचांनन राजे |
हंसासंन ,गरुड़ासन ,वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
दो भुज चारु चतुर्भज दस भुज अति सोहें |
तीनों रुप निरखता त्रिभुवन जन मोहें॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
अक्षमाला ,बनमाला ,रुण्ड़मालाधारी |
चंदन , मृदमग सोहें, भाले शशिधारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
श्वेताम्बर,पीताम्बर, बाघाम्बर अंगें
सनकादिक, ब्रम्हादिक ,भूतादिक संगें
ॐ जय शिव ओंकारा......
कर के मध्य कमड़ंल चक्र ,त्रिशूल धरता |
जगकर्ता, जगभर्ता, जगसंहारकर्ता ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका |
प्रवणाक्षर मध्यें ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रम्हचारी |
नित उठी भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा......
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावें |
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावें ॥
ॐ जय शिव ओंकारा.....
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा......


हर हर महादेव ।